हृदयातल पे अवकाश हुए हैं
घोर मनस व्यथा है, तन में वेदना भरी हुई है, मन में, मधुर अधर संत्रास हुए हैं हृदयातल पे अवकाश हुए हैं। सम्बन्ध भी बेजान पड़े हैं जैसे वो अनजान पड़े हैं, नभ रिश्तों के निराश हुए हैं हृदयातल पे अवकाश हुए हैं। राग रंग निष्प्राण से लगते आनंदित क्षण ज्वार से लगते, क्यूँ सारे पैमाने बेआस हुए हैं हृदयातल पे …