क्या मांगती हूं मैं तुमसे?
क्यूं हर वक्त मुझे दुत्कारा जाता है, क्यूं मेरे वजूद को नकारा जाता है, मैं भी उस ईश की कृति हूं, जिसने सारा जहां बनाया है, उसी ने बनाए धरती और आसमां, उसी ने संसार रचाया है, जब ईश ने दिया है हक बराबर का तो क्यों मुझे जूती की नोक पे ठहराया जाता है। क्या मांगती हूं मैं तुमसे? कभी तख्त-ओ-ताज़ की चाह…