देखो आप मुझे बेडियों से जकड़ सकते हो , यातना भी दे सकते हो, यहाँ तक की आप इस शरीर को ख़त्म भी कर सकते हो, लेकिन आप कदापि मेरे विचारों को कैद नहीं कर सकते,यह विचार आज भी उतना ही अधिक प्रासंगिक है जितना पहले थे। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अतुलनीय योगदान देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आज यानी की 2 अक्टूबर को हम जयंती मना रहे हैं , गांधी के जीवन की छाप आज देखे तो हमारे खान-पान, रहन-सहन, भाव विचार, भाषा शैली में साफ देखी जा सकती है। गांधी जी सहिष्णुता, त्याग, संयम और सादगी की शानदार मिसाल थे, उनमें अद्भुत नेतृत्व क्षमता थी,देखे तो स्वतंत्रता आंदोलन में जनता ने उनके नेतृत्व में जेलें भरीं, लाठियां गोलियां खाईं, उनके सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, चंपारण सत्याग्रह, दांडी सत्याग्रह, दलित आंदोलन, रॉलेट एक्ट, नमक कानून, भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया और आजादी पाने की राह आसान हो गई। गांधी जी बोलते थे कि विश्व में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इतने भूखे हैं कि भगवान् उन्हें किसी और रूप में नहीं दिख सकता, सिवाय रोटी देने वाले के रूप में, जो की आज आजादी के इतने वर्षों के बाद भी यह कही न कही सत्य प्रतित होती है। आज देखे तो मॉब लिंचिंग, विचारधाराओं से असहमति रखने वालों की हत्या, जाति के नाम पर हत्या, सत्ता पाने के लिए दंगों जैसे अनैतिक कृत्यों का सहारा लेने या उन्हें समर्थन देने जैसी हिंसक दुर्घटनाओं के बीच सारी दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी की आज जयंती हैं। महात्मा गांधी उस शख्सियत को कहा जाता है जिसने बिना हथियार उठाए भारत में तकरीबन 200 सालों से अपनी जड़ें जमाए आततायी, निरंकुश और अन्यायी अंग्रेजी शासन का तख्त हिलाकर रख दिया था,अहिंसा का इससे सशक्त उदाहरण दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलता। परमाणु हथियारों के इस युग में गांधी इसीलिए दुनिया की अपरिहार्य जरूरत नजर आते हैं क्योंकि उन्होंने तत्कालीन वक्त के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य को भी सिर्फ अहिंसा और असहयोग के बल पर अपनी बात मनवाने पर मजबूर कर दिए, यह एक अद्भुत किस्म का क्रांतिकारी प्रयोग रहा था। बाद में इसी प्रयोग को दुनिया के कई देशों में अन्यायी प्रशासन के खिलाफ लड़ने के लिए इस्तेमाल किया गया, सत्याग्रह की मदद से ही नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई जीतने में सफल रहे थे, इसीलिए तो उन्हें दक्षिण अफ्रीका का गांधी भी कहा जाता है।
डॉ. विक्रम चौरसिया दिल्ली |
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