हमेशा दूसरो की बेटियों मे कमी निकलना उसकी आदत सी बन गई थी। इसी का परिणाम था, वह इतने बड़े घर मे अकेली पड़ी रहती थी, दिन किसी तरह कट जाता था, पर रात का काला अंधेरा उसे खाने को दौड़ता था। वह इस निराश जिंदगी का अन्त कर देना चाहती थी। जिन्दगी का अन्त करना आसान काम नही था। उसने कई बार नींद की दस-दस गोलियां एक साथ निगल ली थी।पर कुछ नहीं हुआ था, बस नींद की खुमारी में वह घण्टों बेसुध पड़ी रहती थी।वह नाम की संतोष थी।उसके जीवन में संतोष नही था।
राकेश कुमार हरियाणा |
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