गति ऐसी बनाओ
कोई नया गीत गुनगुनाओ
हम सबके गांव में जो अमृत सरोवर सूख गए
उन्हें फिर जाकर जगाओ
लय गति ऐसी बनाओ
पुतहरिया वाला तलाब पता नहीं कहां गया
सिगड़ाना तालाब कहीं खो गया
स्कूल के बगल वाले तालाब
अस्तित्वहीन हो गए
किनारे लगे आम जामुन कैथा के पेड़ खो गए।,
तालाबों की जगह कंक्रीट के जंगल मुंहचिढ़ा रहे
उनके सीने पर खड़े खड़े मुस्कुरा रहे
हवा की गति रोकते ऊंचे मकान है
अब यह बन रहा कौन सा जहांन है
प्रगति की ये कौन सी उड़ान है।
बच्चे चलते हैं तो हांफते हैं
जवान चलते हैं तो काँपते हैं
चश्मा बचपन से आंखों में आ गया,
जवानी को लगता है दीमक खा गया
अब लंबे चौड़े दिखते नहीं जवान है
चौड़े चौड़े सीने वाले अब कहां पहलवान है
बुढ़ापे में भी चलते थे जो शान से
बात ऐसी जैसे तीर निकला हो कमान से
वो सब खुदवाते कुआ और तालाब थे
बनवाते मंदिर धर्मशाला के खास थे,
जो लगाए बाग ऐसे इंसान फिर बनाओ
जो अमृत सरोवर सूख गए उन्हें फिर जगाओ। ।
अशोक कुमार बाजपेई वरिष्ठ साहित्यकार |
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