बूढ़ापा आना तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो इससे कोई भी नही बच सकता है, बुढ़ापे मे बेहद प्यार और देखभाल की जरूरत होती है, बुजुर्गों की देखभाल करना न केवल एक जिम्मेदारी है बल्कि हम सभी का नैतिक कर्तव्य भी है। हमारे बुजुर्ग परिवार की रीढ़ होते हैं,वे जीवन की कठिनाइयों के साथ अच्छी तरह से अनुभव करते हैं, कहा जाता है कि जीवन हमें सबक सिखाता है, पुराने लोग हमें सिखाते हैं कि कैसे बढ़ें, कैसे इस दुनियां में जीवित रहें और कैसे अपने कैरियर को आकार दें। अपने असीम प्रयास से हमें इस दुनियां में स्थापित करते हैं, यह हम सभी का भी नैतिक कर्त्तव्य है कि हम उन्हें उनके बुढ़ापे के दौरान वापस भुगतान करें, दुर्भाग्य से, आज अक्सर युवाओं को बड़ों के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों को भूलते हुए देखा जा रहा है, वे बुजुर्गो के देखभाल के महत्व को समझने के लिए तैयार नहीं हैं और अपने बुढ़ापे के दौरान अपने माता-पिता की देखभाल करने के बजाय, उन्हें वृद्धाश्रम में भेजना पसंद करते हैं. वे अपने माता-पिता के साथ रहने के बजाय एक स्वतंत्र जीवन जीना पसंद करते हैं,यह हमारे सभ्य समाज के लिए अच्छा संकेत नहीं है, याद रखना चाहिए कहते भी हैं न की " वक्त उसे भी नीचे उतारेगा कभी , उम्र भर कौन आसमां में रहता है भला"! आज लिखते वक्त अपने दादा जी व दादी मां के साथ ही नाना जी व नानी मां को बहुत ही याद कर रहा हूं,कैसे रात में खाने के बाद हर दिन सभी भाईयों को सोने से पहले अलग अलग प्रेरणादायक कहानियां सुनाया करते थे जो वही आज मेरे संघर्ष में हमे सच्चाई ,ईमानदारी व नेक दिली के साथ जीवन के इस संघर्षों में चलने के लिए प्रेरित कर रहे है,लेकिन आज के बहुत से बच्चो को अपने दादा , दादीमां की कहानियां सुनने से वंचित हो रहे है , जिससे बच्चे पूर्ण रूप से विकसित ही नहीं हो पा रहे है। देखे तो सच्चाई भी यही है की हर कोई अपने बच्चों को बड़े ही लाड़-प्यार से परवरिश करते है,यथासंभव उसे अच्छी शिक्षा दिलाते है, ताकि बड़ा होकर वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके और बुढ़ापे का सहारा बन सके। अधिकतर बच्चे ऐसा करते भी हैं, जबकि कुछ बेशर्म इतने नालायक होते हैं कि अपने ही मां-बाप को तिरस्कृत कर देते हैं। इसी लिए समाज में जागरूकता लाने के लिए ही 15 जून को बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए उनके आवाज को बुलंद करने के लिए ही विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार दिवस मनाया जाता है। आज तो बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा है जो की दुनियां भर में लाखों वृद्ध व्यक्तियों के स्वास्थ्य और मानवाधिकारों को प्रभावित कर रहा है,बुजुर्गावस्था, हम मानव जीवन की संवेदनशील अवस्था है , हमारे बुजुर्ग, प्यार और सम्मान के मोहताज होते हैं। बुजुर्गों की भावनाओं का सम्मान करना हम सभी का दायित्व है, आखिर हमें भी उम्र की उस दहलीज पर कदम रखना ही है, लिहाजा इस दर्द को हमें समझना होगा।बुजुर्गों को समय पर भोजन, दवा, शौच सुविधाएं तथा कुछ पल घर के सदस्य उनके साथ समय गुजारने को मिलें, तो प्यार व सम्मान के भूखे बुजुर्गों की पीड़ा को निश्चित रुप से कम किया जा सकता है। बढ़ती उम्र के साथ, जब तमाम तरह के रोगों से शरीर जीर्ण होने लगता है तथा शारीरिक और मानसिक थकान जीवनशैली पर हावी हो जाती है, तब वारिसों का उनके प्रति असहयोग व अनादर की भावना कितना उचित है? यह सोचने की जरुरत है।
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