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परिर्वतन के महाशंख से ,
हर जीवों का सम्मान करो।
नर हो या नारी हो,
किसी का भी ना अपमान करो।
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अपने देश की संस्कृती सभ्यता का ,
चलो गुणगान करो
देश हमारा, राष्ट्र हमारा
इसका तुम सम्मान करो
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अमीर हो या गरीब हो,
झुककर उसका मान करो।
दीन-दुःखी मजबूर को गले लगा,
उसका भी उद्धार करो।
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काव्योदय" परिवार की गरिमा ,
का थोड़ा ख्याल करो।
हर नारी के विचारों का,
दिल से तुम सम्मान करो।
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मनुष्य जन्म मिला है तुमको,
उसका कुछ तो भान करो ।
अपने मन के कुविचारों का,
सुविचारों से परिर्वतन करो।
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आँख, कान, नाक, मुँह मन
पाँच इन्द्रियों ,इनको तुम संयमित करो।
साकारात्मक स्वाध्याय, ममन, चिन्तन से,
खुद का तुम परिवर्तन करो।
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देव अंश का नाम है "मानव"
मनुष्य बनकर जीयो ।
मानवता, प्रेम, सम्मान जगा,
खुद में तुम परिर्वतन करो।
स्वरचित, मौलिक कविता
प्रियंका रस्तोगी
बाराबंकी, लखनऊ
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