संयम के दोहे


संयम का है ही नहीं,किंचित यहां विकल्प।
संयम को नित मानना,आगत का संकल्प।।

संयम को तो मानकर,मानव बने महान ।
संयम वह संकल्प है,जो लाता सम्मान।।

संयम तो है चेतना,संयम है उत्थान।
संयम को ही थामकर,जीना हो आसान।।

संयम तो संदेश है,संयम है शुभकर्म।
संयम तो है बंदगी,संयम है इक धर्म।।

संयम तो है प्रेरणा,संयम तो शुभगान।
संयम तो है सादगी,संयम नवल विहान।।

संयम तो है साधना,संयम तो है ध्यान।
संयम तो है जागरण, ,मानव पाये शान ।।

संयम तो है दिव्यता,अनुशासन आवेश ।
संयम है गंभीरता,बदले जग अरु देश।।

संयम तो नित धैर्य है,संयम तो है वेग।
संयम को तो मान लो,जो है सुख का नेग।।

संयम तो है सभ्यता,संस्कार का रूप।
संयम से ही नित खिले,उजली-पावन धूप ।।

संयम तो है नित विजय,संयम है उजियार ।
संयम से ही मिल सके,हमको जीवन-सार ।।

संयम तो जयघोष है,संयम है इक राह।
संयम को तो देखकर,सहज निकलती वाह।।

     शरद नारायण खरे
           मंडला

  











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