आज का चीन पुराना सुधारवादी साम्राज्य बनाने वाले देंग शियाओ पिंग और माओ त्से तुंग वाला चीन नहीं रह गया है। जो वाम पंथी सिद्धांतों पर चलने वाला था। अब उसका एक ही सिद्धांत है विस्तार वाद और वह भी किसी भी कीमत पर। अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक डिक्टेटर की तरह चीन के प्रशासन को हंटर से चला रहैँ है, और विदेश नीति में वह अत्यंत लालची, विस्तार वादी हो गया है। चीन पिछले कई दशक से अपनी आर्थिक तथा सामरिक शक्ति को बढ़ाने में लगा हुआ है। और इसी आर्थिक तथा युद्ध कला की शक्ति पर वह कई देशों को अपने कुत्सित इरादों के चलते खुलेआम धमकी भी देने लगा है। इजराइल फिलिस्तीन युद्ध के समय उसने फिलिस्तीन का साथ देते हुए इजरायल तथा अमेरिका को स्पष्ट तौर पर धमकाया था, कि युद्ध यदि आगे बढ़ा और अमेरिका ने इस युद्ध में दखल दिया तो अमेरिका बुरी तरह हार का मुंह देखेगा। चीन के प्रवक्ता ने यह भी कहा था कि इस युद्ध में अमेरिका की मुस्लिम देशों के प्रति उदारवादी मानव अधिकार की नीति कहां अचानक गायब हो गई,ऐसे में इसराइल तथा अमेरिका की चीन खुलेआम खिलाफत करता रहा है। चीन ने मूल रूप से चीन सागर तथा अरब सागर में अपने आप सामरिक बेड़े तथा समुद्री जहाजों को भेजकर वैश्विक स्तर पर अमेरिका फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जापान, मलेशिया, भारत,तथा अन्य पड़ोसी देशों में अशांति तथा भय का वातावरण बना दिया था ।चीन के समुद्री सीमा पर कई देशों की सीमाओं के अतिक्रमण के फल स्वरुप अमेरिका, फ्रांस, जापान तथा भारत इन 4 देशों में चीन के विरुद्ध एक महत्वपूर्ण क्वाड सम्मेलन पिछले कुछ माह पहले आयोजित किया था। जिसमें इन 4 देशों ने आपसी सहयोग कर अरब चीन तथा प्रशांत महासागर में चीन की दादागिरी तथा विस्तार वादी नीति को नियंत्रण में रखने के लिए अनेक समझौते किए, और इसके पश्चात नौसैनिक संयुक्त अभ्यास भी किए थे, इस नौसैनिक अभ्यास तथा संयुक्त समझौते ने चीन को चौकन्ना कर दिया था। एवं भारत की रूस से पुरानी दोस्ती में खलल डालने का भी प्रयास चीन सरकार द्वारा किया गया,चीन नहीं चाहता है कि रूस अपना वरदहस्त भारत पर रखें। और इसी के चलते उसने लद्दाख की भूमि पर अतिक्रमण करने की कोशिश की थी,पर भारत की सामरिक शक्ति ने उसके इस बाहुबली प्रयास को नेस्तनाबूद कर दिया था। चीन अपनी आर्थिक तथा सामरिक ताकत के बल पर अमेरिका को सीधी टक्कर देने की स्थिति में आ गया है। और वह बाकी देशों को अपने बताए गए निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य करना चाहता है। इस स्थिति में 4 देशों का क्वाड सम्मेलन चीन की सामरिक ताकत के खिलाफ एक सशक्त मुहिम मानी गई है,विगत दिनों चीन ने बांग्लादेश को स्पष्ट धमका कर कह दिया है कि यदि बांग्लादेश क्वाड सम्मेलन के किसी भी देश अथवा समुद्री सीमा पर उनकी मदद करेगा, तो चीन से बुरा कोई नहीं होगा। चीन में भूटान, नेपाल,बांग्लादेश तथा पाकिस्तान की सीमा पर भूमि को आधिपत्य में लेकर अपने कई सामरिक गांव बना लिए हैं,और चीन सागर पर वह अपनी सामरिक गतिविधि तेज कर चुका है। मलेशिया तथा इंडोनेशिया के समुद्री क्षेत्र में वह अतिक्रमण कर चुका है। चीन अपने कुल मिलाकर 18 पड़ोसी देशों की समुद्री सीमा तथा भूमि पर कब्जा जमाने के जुगत में कई जगह अतिक्रमण कर चुका है। वह अपनी विस्तार वादी नीति को आर्थिक समृद्धि एवं सामरिक शक्ति के दम पर पूरे विश्व में अपनी ताकत तथा शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता है, बड़े देशों में अमेरिका, फ्रांस,ऑस्ट्रेलिया,इंग्लैंड चीन के सीधे निशाने पर है। वहीं अमेरिका चीन के साथ कई हुए समझौतों को विगत दिनों वर्तमान राष्ट्रपति जो वार्डन के नेतृत्व में बर्खास्त कर चुका है। इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि अमेरिकी नवीन प्रशासन चीन की विस्तार वादी नीतियों को भापकर उसका खुला विरोध कर रहा है। और इस विरोध की आग में घी का काम इजराइल फिलिस्तीन युद्ध में अमेरिका द्वारा इजराइल को समर्थन देकर कर दियाl
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