मनुष्य के जीवन में प्रेम तथा ज्ञान दोनों ही अत्यंत आवश्यक एवं उत्प्रेरक अंग है। प्रेम भावनात्मक तत्व है, जो मनुष्य को इंसान बनाता है, संवेदना और मानवता को जागृत करता है। ज्ञान की उत्कंठा या तार्किक क्षमता मनुष्य को निरंतर प्रगति की ओर ले जाती है। मनुष्य के जीवन में ज्ञान ही उसे मानवता के उत्कृष्ट शिखर पर ले जाता है, वह मनुष्य को पशुत्व से अलग रखता है। मनुष्य ज्ञान की अनुभूति के कारण ही मुस्कुराता हंसता है, जबकि जानवर इसके अभाव में मूक बना रहता है, हंसता,मुस्कुराता नहीं है, इसलिए मुस्कुराइए, हंसीये, प्रेम करिए और ज्ञान प्राप्ति की ओर उन्मुख होते रहिए, तब ही जीवन सार्थक हो सकता है। प्रेम के बिना ज्ञान और अध्ययन मनुष्य को मशीन बना देता है। प्रेम और ज्ञान की अलग-अलग मीमांसा की गई है। प्रेम, ज्ञान की अपेक्षा अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि प्रकृति में अधिक घुल मिलकर आधारभूत तत्व तो बनाता है ही,बल्कि प्रेम प्रत्येक जीव में विद्यमान होता है। परस्पर एक दूसरे की भाषा नासमझ पाने वाले जीव भी एक दूसरे से प्रेम की भाषा द्वारा मधुर संवाद कर सकते हैं। प्रेम सभी प्रकार के माननीय बंधनों से परे है।
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