मानव जीवन में साहित्य का योगदान

मनुष्य के हाथ में अपना जन्म तो नहीं होता है।पर जन्म लेने के बाद अपना जीवन जीना तो उसके हाथ में होता है। अच्छा जीवन जीने के लिए उसे क्या करना होगा? इस प्रश्न की तह में जायेंगे।तो हम पायेंगे की हमें अच्छा साहित्य पढ़ने की जरूरत है। साहित्य पढ़ने से काफी कुछ बातें जानने व समझने को मिलती है।कहा भी जाता है कि *साहित्य समाज का दर्पण होता है* समाज व्यक्तियों से मिलकर ही बनता है।अच्छे व्यक्ति होंगे तो वह समाज भी अच्छा/सभ्य होगा। कैसे साहित्य इंसान में इंसानियत के गुण पैदा करने में सक्षम होता है। किसी भी समाज की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व भौगोलिक जानकारी के लिए हमें उसका साहित्य पढ़ना पड़ेगा। उस समाज का प्राचीन इतिहास ,सामाजिक  जीवन कैसा था? उसमें समय- समय पर क्या-क्या बदलाव आया।इन सब की जानकारी हमें साहित्य पढ़ने से ही होती है।मानव जीवन में आने वाले चूनौतियों का सामना करना भी हमे साहित्य सीखाता है।मानव जीवन के कई अनसुलझे प्रश्नो के हल ह साहित्य को पढ़ने से हमें मिलते है।

क्योंकि साहित्य में भूत और वर्तमान की सच्चाई व अनुभूतियां होती है। जो सुंदर व परिमार्जित भाषा में लिखी होती है। साहित्यिक सामग्री पाठक के दिल व दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। साहित्य की तमाम विशेषताओं पर ध्यान करते है। तो समझ में आता है की साहित्य मानव जीवन को बहुत प्रभावित करता है। अच्छा साहित्य जीवन के हर पहलू को समझाने की ताकत रखता है। जीवन में सद्गुणों का विकास हो, इसके लिए व्यक्ति को  निरंतर अच्छे साहित्य का अध्ययन करते रहना चाहिए। साहित्य में समयानुकूल बदलाव भी आता रहता है।

हिंदी साहित्य में भारतेंदु युग से लेकर वर्तमान युग तक नजर दौड़ायेगे। तो हमें साहित्य में कई सारे परिवर्तन देखने को मिलते है। कभी राजभक्ति,कभी दास भक्ति,तो कभी श्रृंगार रस व कभी प्रभु भक्ति, देश भक्ति, व्यक्तिगत वाद व कभी समाजवाद आदि देखने को मिलेगे।

हमारे दैनिक जीवन को साहित्य कैसे प्रभावित करता है। इसके बहुत सारे उदाहरण समाज में हमको देखने को मिल जाएंगे। जो अच्छा साहित्य पढ़ते है। उनकी बातचीत करने का लहजा,रहन- सहन, वेशभूषा सभी मे अपनी संस्कृति व संस्कारों की झलक देखने को मिलती है।

साहित्य के अध्ययन से व्यक्ति समाज में बदलाव लाता है।इस बात को मानते तो सब है।पर बहुत कम घरों में ही आपको साहित्य पढ़ने की आदत मिलेगी। हमारी धार्मिक पुस्तकें गीता, रामायण भी आपको घरो में नही मिलेगी। पुस्तकें खरीदने की संस्कृति को भूलते जा रहे है।बच्चों में साहित्य पढ़ने की रूचि समाप्त हो रही है। बस चारों ओर एक ही होड़ मची हुई है *पढ़ो- पढ़ो और अच्छे अंक प्राप्त करो*। बच्चों को कोई संस्कार, मानवीय मूल्यों, संवेदनाओं के बारे में नही कहते है‌।इन सबका परिणाम हम देख रहे है। ऊंची-ऊंची डिग्रिधारी छात्र-छात्रा जघन्य अपराधों में संलिप्त पाए जाते है।
बच्चों में साहित्य पढ़ने की रूचि बढ़ाने हेतु हमें उनको साहित्य के सौंदर्य शास्त्र के बारे मे समझाना पड़ेगा ताकि साहित्य को पढ़कर वह भी उसके रसों का रसस्वादन कर सके। फिर धीरे- धीरे बच्चों को साहित्य से उनके जीवन में आने वाले बदलावों को लिखना भी सिखाना होगा।
हमारे देश की बहुत बड़ी विडम्बना है यहां करोड़ों की संख्या में शिक्षित तो हो रहे है।पर वह सही मायने में शिक्षित नही कहे जा सकते है। क्योंकि उन्होंने अपने संस्कारों को भूला दिया है।जो खुशहाल जीवन जीने के लिए शिक्षा से कम नही है।

आजकल एकल परिवार प्रथा का बहुत चलन हो गया है। मां बाप के पास बच्चों के लिए समय नही है। उन्हें संस्कार देने वाला घरों में भी कोई नही है। विद्यालयों में भी शिक्षक पाठ्यक्रम पूरा कराने पर ज्यादा जोर देते है। शिक्षकों को अपने परिणाम की ज्यादा चिंता रहती है। *इसलिए बच्चे  अंक लाने वाली मशीनें बन कर रह गए है*। 

ऐसी स्थिति में जीवन जीने की कला के बारे में कोई बताने वाला व सिखाने वाला दिखता नही है। रही- सही कसर इन टीवी चैनलों व मोबाइल यंत्र ने कर दी। इनसे भी बच्चे अच्छाई  कम बुराइयां ज्यादा सीखा रहे है। इन सबके पीछे हमारा सत साहित्य नहीं पढ़ना, घरों में अच्छी  पुस्तकें नही रखना भी है। गांवों में पुस्तकालयों की कमी है ‌बच्चों के पास बस पढ़ने के नाम पर दैनिक अखबार, पाठ्य पुस्तकें, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की मैगजीन होती है।
व्यक्ति अपने जीवन को कैसे समाज के लिए उपयोगी बनाये? जीवन जीने का उद्देश्य क्या होना चाहिए? युवा पीढ़ी को इन सब बातों से कोई लेना देना ही नही रहा है। 

साहित्य में जीवन की अच्छाइयां, हमारे सांस्कृतिक गौरव, हमारे मान बिंदु आदि के बारे में जानकारी मिलती है‌। साहित्य से हम समझ पाएंगे कि हमारा दैनिक व्यवहार कैसे निर्मल व सर्वग्राही हो।

साहित्य का व्यक्ति के मन और दिमाग पर प्रभाव पड़ता है। अच्छा साहित्य पड़ेंगे तो अच्छा प्रभाव पड़ेगा। बुरा साहित्य पढ़ेंगे, तो बुरा प्रभाव पड़ेगा‌।

साहित्यकार हमेशा अपने अनुभव के साथ, समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर करता है। समाज में चेतना लाने का प्रयास करता है। साहित्य बहुत बड़ी ताकत होती है। 

एक समय ऐसा आ गया था। महाराणा प्रताप का भी मन कमजोर हो गया था। उन्होंने अकबर को दासता स्वीकार करने का पत्र लिख दिया था।पर साहित्य का ही कमाल था। जो महाराणा प्रताप को अकबर की दासता स्वीकार करने से रोका था।

"जद पीथल कागद ले देखी‚ राणा री सागी सैनांणी।
नीचै सूं धरती खिसक गयी‚ आख्यों मैं भर आयो पाणी।

पण फेर कही तत्काल संभल “आ बात सफा ही झूठी है।
राणा री पाग सदा ऊंची‚ राणा राी आन अटूटी है।

“ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूँ, राणा नै कागद रै खातर।”
“लै पूछ भला ही पीथल! तू‚ आ बात सही” बोल्यो अकबर।

“म्हें आज सुणी है‚ नाहरियो, स्याला रै सागै सोवैलो।
म्हें आज सुणी है‚ सूरजड़ो‚ बादल री आंटा खोवैलो”

पीथल रा आखर पढ़ता ही‚ राणा राी आँख्यां लाल हुई।
“धिक्कार मनै‚ हूँ कायर हूँ” नाहर री एक दकाल हुई।

“हूँ भूख मरूं‚ हूँ प्यास मरूं‚ मेवाड़ धरा आजाद रहै।
हूँ घोर उजाड़ां मैं भटकूँ‚ पण मन में माँ री याद रह्वै”

पीथल के खिमता बादल री‚ जो रोकै सूर उगाली नै।
सिंहा री हाथल सह लेवै‚ वा कूंख मिली कद स्याली ने।

जद राणा रो संदेश गयो‚ पीथल री छाती दूणी ही।
हिंदवाणों सूरज चमके हो‚ अकबर री दुनियां सूनी ही"।

पुराने समय में जो राजा महाराजाओं के यहां साहित्यकार रखे जाने की परम्परा थी।उनका काम साहित्य द्वारा सैनिकों का उत्साह व जोश बढ़ाना होता था। साहित्यकारों ने कई युद्ध राजाओं को जीताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

साहित्य व्यक्ति मे बदलाव के साथ-साथ,नये विचारों, नई खोज, नई क्रांति व नवाचार करने के लिए प्रोत्साहित भी करता है। साहित्य का व्यक्ति के जीवन में बहुत प्रभाव पड़ताहै। साहित्य के बिना मानव  अच्छा जीवन जीने की कल्पना नही कर सकता है। साहित्य ही मानव को जीवन में आने वाली चुनौतियां का सामना मजबूती के साथ करना सीखाता है।

सद् साहित्य पढ़ने से हमारे दिमाग में अच्छे विचार आते है। विचारों को मजबूती मिलती है। उससे  व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है, आत्मविश्वास पैदा होता है। व्यक्ति असफलता को भी एक अवसर के रूप में देखता है। साहित्य मानव के जीवन संघर्ष को आसान बनाता है। मानव जीवन को सफलता की ओर ले जाता है। इसलिए हम कह सकते है कि साहित्य का मानव के जीवन में बड़ा महत्व है। बिना साहित्य के जीवन जीना असंभव सा लगता है। साहित्य को पढ़ने और लिखने से व्यक्ति को जीवन में परमानंद प्राप्त होता है। 















              हंसराज हंस


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