देख दृश्य रोना आता है , मधुशाला में भीड़ हुई है ।।
सरहद मौत , घरों में पार्टी ,
क्यों न रोएगी माँ भारती ।
शहादत का है पता सभी को,
हरकत क्यों है फिर शरारती?
इक आदत ये रम गिटने की ।
इक दुश्मन से लड़ कर आया ,
इक आदत घर में पिटने की ।
कोरोना है फिर भी देखो, ठेकों पे न उछीड़* हुई है।
देख दृश्य रोना आता है , मधुशाला में भीड़ हुई है।।
शोक, शौक में फर्क यही है,
सच कह दूँ तो नर्क यही है ।
नहीं किसी के गम में साँझा ,
हाल हकीकत ,तर्क यही है ।
दुनिया संकट में दिखती है ,
ठेकों पर दारू बिकती थी ।
गम में घायल आज कलम भी,
रो - रोकर रचना लिखती है ।
मातम मौहल्ले में छाया ,चित पे चोट भचीड़* हुई है।
देख दृश्य रोना आता है , मधुशाला में भीड़ हुई है।।
कहीं गम में गलियारे रोते ,
कहीं रम पी गलियारे सोते।
कहीं आँगन में खुशियाँ छाई ,
कहीं दुख घर में सारे ढोते ।
कोई हो खामोश खड़ा है ,
कोई रख संतोष खड़ा है।
कोई तिरंगा ओढे आया ,
कोई पी बेहोश पड़ा है ।
संस्कारों का साँस रुका है, बेशर्मी नर नीड़* हुई है ।
देख दृश्य रोना आता है , मधुशाला में भीड़ हुई है।।
देखी है दो ढंगी दुनियाँ ,
बिन कपड़ों के नंगी दुनियाँ ।
बाल इक नहीं सिर के ऊपर,
करती देखी कंघी दुनियाँ ।
किसी के घर का गया उजाला,
जलकर खंडहर हुआ शिवाला।
किसी को कोई फिक्र नहीं है,
गया सुबह से है मधुशाला ।
जिसके घर से लाल गया है,जिंदगी उनकी बीड़* हुई है।
देख दृश्य रोना आता है , मधुशाला में भीड़ हुई है ।।
1. #भचीड़* -जोर से मारना
(हरियाणवी बोली आँचलिक शब्द)
2. #बीड़*- जंगल
(हरियाणवी बोली आँचलिक शब्द)
3. #उछीड़ - (हरियाणवी बोली में)
भीड़ का विपरीतार्थक शब्द
4.#नीड़ - नजदीक
हरियाणवी बोली आँचलिक शब्द
नफे सिंह योगी मालड़ा
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