Periodic Research (P:
ISSN No. 2231-0045 RNI No. UPBIL/2012/55438 VOL.-9, ISSUE-1 August -2020
E: ISSN No. 2349-9435)
Abstract
असिस्टेंट प्रोफेसर,
दर्शन शास्त्र विभाग,
सेंट एण्ड्रयूज काॅलेज,
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
व ैसे ता े कोरा ेना वायरस वर्ष 2019 के अ ंतिम माह में चीन में पाया
गया1
और देखते ही देखते दा े से तीन माह में समूचे विश्व में अपना अधिपत्य
जमा लिया। जिस तरह से कोरा ेना महामारी से संक्रमित हा ेने वालों कि संख्या
तेजी से बढ़ती जा रही ह ै, इस से विश्व का प्रत्येक देश आतंकित होता जा
रहा है। हर का ेई इस महामारी से बचने का उपाय ढूंढने लगा ह ै। जिसको जा े
भी मार्ग दिख रहा है, वह उसी पर अनुसंधान करने का प्रयास करने लगा ह ै।
र्कइ बड ़े देशा ें ने इस का ेरा ेना महामारी के लिये चिकित्सा पद्दति पर अधिक
विश्वास करते ह ुए अपने चिकित्सा अनुसंधानों का े गति प्रदान की ह ै। जिसमें
नित्य नये प्रया ेगा ें पर उन्हा ेंने जा ेर दिया ह ै।
भारत में भी इस महामारी से निपटने के लिए र्कइ अनुसंधान किए जा
रहे ह ै ं। एक तरफ तो भारत में प्रचलित विभिन्न चिकित्सा पद्धतिया ं जैसे -
आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा, प्रा‟तिक, हा ेम्योपैथी और एलोपैथी आदि स्वयं में नित
नए अनुसंधान कर रह े है ं तो वहीं भारतीय प्राचीन दर्शन प्रणाली, जिसका की
मुख्य उद्देश्य ही मानव जीवन से दुखा ें का े दूर करना ह ै, ने भी स्वयं को
ख ंगालना शुरू कर दिया है। भारतीय दर्श नशास्त्र की योग दर्श न पद्धति इसी
समु ंद्री मंथन का परिणाम ह ै।
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