Periodic Research (P:
ISSN No. 2231-0045 RNI No. UPBIL/2012/55438 VOL.-9, ISSUE-1 August -2020
E: ISSN No. 2349-9435)
Abstract
असिस्टेंट प्रोफेसर,
हिन्दी विभाग,
देशबंधु महाविद्यालय,
कालकाजी, नई दिल्ली,
दिल्ली विश्वविद्यालय,
दिल्ली, भारत
वर्षा े की लंबी गुलामी की परंपरा ने हिंदुस्तानी व ैचारिक के आधार को
ही दूषित कर दिया था। हम जा े भी सोचते ह ै ं एवं जीते थे उसमें संव ेदनशीलता
विवेक एव ं समझदारी का अभाव था यही कारण था हमने आपस में ही जाति
धर्म, संस्कृति एवं क्षेत्र को आधार बनाकर एक दूसरे का े नीचा दिखाने की आ ेर
प्रव ृत्त हा े गए जिसके कारण सामाजिक एवं परिवारिक ताना-बाना शोषण एवं
उत्पीड ़न का प्रत्यक्ष गवाह बन गया। आत्मबल एवं आत्मविश्वास की कमी के
कारण एकता, राष्ट्रीयता एवं समरसता का भाव नही ं रहा। जिसके कारण
समाज में अनेक प्रकार की विषमताए ं पाखंड आडंबर एव ं कुरीतियों का
बोलबाला हो गया था। विदेशी शासकों से प्र ेरणा लेकर सबल भारतवासियों न े
भी आपसी विभेद एवं शत्रुता का े भी प्रोत्साहित किया, जिससे वे लंब े समय तक
अपना वर्चस्व कायम रखकर शोषण कर सक ें। धार्मिक आडंबर एव ं कुरीतियों
की आड़ में सामान्य जन का े धर्म एवं संस्कृति की मूल भावना से ही विस्मृत
करने का प्रयास किया गया। शा ेषण, उत्पीड़न, विवेक एवं अलगाव को नियति
मान लेने से जागरूकता स्वतंत्रता एवं तर्क का र्कोइ महत्व नहीं रहा
प ुनर्जा गरण के आलोक में चलाए गए विविध सुधार आंदा ेलन ने इनके विरुद्ध
जमकर प्रतिवाद किया एवं भारतीया ें में स्वतंत्रता की चेतना का प्रचार प्रसार
किया।
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