भारतेन्दु युग का सामाजिक-सांस्कृतिक चिंतन ( Socio-Cultural Thinking of Bharatendu Era)

 

Periodic Research (P: ISSN No. 2231-0045 RNI No. UPBIL/2012/55438 VOL.-9, ISSUE-1 August -2020 E: ISSN No. 2349-9435) Paper Submission: 05/08/2020, Date of Acceptance: 20/08/2020, Date of Publication: 21/08/2020

 Abstract



 नविता चैधरी

असिस्टेंट  प्रोफेसर,

हिन्दी विभाग,

देशबंधु  महाविद्यालय,

कालकाजी, नई दिल्ली,

दिल्ली विश्वविद्यालय,

दिल्ली, भारत

वर्षा े की लंबी गुलामी की परंपरा ने हिंदुस्तानी व ैचारिक के आधार को

ही दूषित कर दिया था। हम जा े भी सोचते ह ै ं एवं जीते थे उसमें संव ेदनशीलता

विवेक एव ं समझदारी का अभाव था यही कारण था हमने आपस में ही जाति

धर्म, संस्कृति एवं क्षेत्र को आधार बनाकर एक दूसरे का े नीचा दिखाने की आ ेर

प्रव ृत्त हा े गए जिसके कारण सामाजिक एवं परिवारिक ताना-बाना शोषण एवं

उत्पीड ़न का प्रत्यक्ष गवाह बन गया। आत्मबल एवं आत्मविश्वास की कमी के

कारण एकता, राष्ट्रीयता एवं समरसता का भाव नही ं रहा। जिसके कारण

समाज में अनेक प्रकार की विषमताए ं पाखंड आडंबर एव ं कुरीतियों का

बोलबाला हो गया था। विदेशी शासकों से प्र ेरणा लेकर सबल भारतवासियों न े

भी आपसी विभेद एवं शत्रुता का े भी प्रोत्साहित किया, जिससे वे लंब े समय तक

अपना वर्चस्व कायम रखकर शोषण कर सक ें। धार्मिक आडंबर एव ं कुरीतियों

की आड़ में सामान्य जन का े धर्म एवं संस्कृति की मूल भावना से ही विस्मृत

करने का प्रयास किया गया। शा ेषण, उत्पीड़न, विवेक एवं अलगाव को नियति

मान लेने से जागरूकता स्वतंत्रता एवं तर्क  का र्कोइ  महत्व नहीं रहा

प ुनर्जा गरण के आलोक में चलाए गए विविध सुधार आंदा ेलन ने इनके विरुद्ध

जमकर प्रतिवाद किया एवं भारतीया ें में स्वतंत्रता की चेतना का प्रचार प्रसार

किया।

Varsha's long tradition of slavery contaminated the very basis of Hindustani ideology. There was a lack of sensitivity, discretion and understanding in what we thought and lived. That was the reason we tended to degrade each other by making caste, religion, culture and region based on each other, due to which social and family fabrication Became a direct witness of exploitation and oppression. There was no sense of unity, nationality and harmony due to lack of confidence and confidence. Due to which many kinds of inequalities in the society, hypocrisy and evil were dominated. Taking inspiration from the foreign rulers, the strong Indians also encouraged mutual discrimination and enmity, so that they could exploit by maintaining their supremacy for a long time. Under the guise of religious hypocrisy and evils, an attempt was made to forget the common man with the basic spirit of religion and culture. Considering exploitation, oppression, conscience and isolation as destiny, awareness freedom and logic had no importance, the diverse reform movement in the light of the Renaissance fiercely protested against them and spread the consciousness of freedom among Indians.

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