Periodic Research (P:
ISSN No. 2231-0045 RNI No. UPBIL/2012/55438 VOL.-9, ISSUE-1 August -2020
E: ISSN No. 2349-9435)
Abstract
पूर्व शोधार्थी,
हिन्दी विभाग,
जयप्रकाश विश्वविद्यालय ,
छपरा, बिहार, भारत
राजकमल चा ैधरी काव्यात्मक संघर्ष के कवि ह ैं, जिन्हा ेंने अपने काव्य
का े भी जीवन की तरह ही संघर्ष करते ह ुए निर्मित किया ह ै। जीवन में संघर्ष
किये बगैर भी संघर्ष की कविता लिखी जा सकती है लेकिन काव्यात्मक संघर्ष
की सृष्टि जीवन में संघर्ष की वास्तविक उपस्थिति के बिना असंभव है।
राजकमल के जीवन में संघर्ष ही संघर्ष था, इसलिए उन्हें काव्यात्मक संघर्ष से
अपरिचय का सामना नहीं करना पड़ा। उनकी प्रतिनिधि कविता ‘मुक्ति-प्रसंग’
इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। यह त्रिस्तरीय अर्थ वŸाा सम्पन्न कविता ह ै जहाँ
व्यक्ति, राष्ट्र और वि‛व के संघर्षा ें का अन्तर्गु ंफन उपलब्ध होता ह ै। यह विभिन्न
रा ेगा ें से मरनासन्न व्यक्ति, राष्ट्र और वि‛व के मुमुक्षा की कविता है। यहाँ एक
ओर व ै‛िवक आ ैर राष्ट्रीय संदर्भों से जुड़कर व ैयक्तिक संब ंधा ें का े व्यापक एवं
विविध आयाम प्राप्त होते ह ै ं ता े दूसरी आ ेर व ै‛िवक एवं राष्ट्रीय संदर्भा ें का े
आत्मीयता एव ं आत्मपरकता की रचनात्मकता प्राप्त होती ह ै।
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