【"गुरु आपके उपकार का, कैसे चुकाऊ मै मोल ?"】
【"गुरु आपके उपकार का, कैसे चुकाऊ मै मोल ?"】

 

 

"गुरु है गंगा ज्ञान की, करे अज्ञान का नाश।

ब्रम्हा-विष्णु-महेश सम, काटे भाव का पाश।।"

 

         गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व हर साल आषाढ़ महीने की पूर्णिमा वाले दिन मनाया जाता है| इस दिन का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है| इस दिन को सिर्फ हिन्दू धर्म ही नहीं बल्कि बुद्धा और जैन धर्म के लोग भी मनाते है| इस दिन को प्राचीन काल के एक गुरु ऋषि व्यास की याद में मनाया जाता है| ऋषि व्याद ने वेदो की रचना करि थी| इस पर्व को मनाने का मूल कारण सम्पूर्ण भारत के सभी गुरुओ और शिक्षकों को सम्मान देना है|

 

"गुरु आपके उपकार का, कैसे चुकाऊ मै मोल ? करोड़ो कीमती धन भला, गुरुवर है मेरा अनमोल!!"

 

           हमारे यहाँ एक कहावत बोलते हैं की गुरु बिन ज्ञान नही गुरु के बिना जिन्दगी का कोई मोल नही | इस लिये अपने जीवन में एक गुरु होना जरुरी हैं हम ये नहीं कहते की केवल आध्यात्मिक गुरु होता हैं | हर मोड़ पर व्यक्ति के  जीवन में अनेक गुरु आते हैं जैसे स्कूल में पढ़ाने वाला गुरु होता जो हमें शिक्षा देता उसी प्रकार हमारे माता पिता भी हमारे गुरु होते जो हमें जीने का डंग सीकाते  हैं इस प्रकार हर वो व्यक्ति जो हमें कुछ जान देता हैं जिस के कारण हमारी जिंदगी स्राथक होती हैं वो सब गुरु के जैसे हैं पौराणिक काल से ही गुरु ज्ञान के प्रसार के साथ-साथ समाज के विकास का बीड़ा उठाते रहे हैं। गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है- ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान) एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। शास्त्रों में गुरु का महत्त्व बहुत ऊँचा है। गुरु की कृपा के बिना भगवान् की प्राप्ति असंभव है। जिनके दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होता है, अपने आप धैर्य और शांति आ जाती हैं, वे परम गुरु हैं। जिनकी रग-रग में ब्रह्म का तेज व्याप्त है, जिनका मुख मण्डल तेजोमय हो चुका है, उनके मुख मण्डल से ऐसी आभा निकलती है कि जो भी उनके समीप जाता है वह उस तेज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।

 

"गुरु बिना ज्ञान नही ज्ञान बिना आत्मा नही,

ध्यान, ज्ञान, धैर्य और कर्म सब गुरु की ही देन है।"

 

            गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। गुरु हमें शिक्षा देते हैं। गुरु जिन्हें हम आचार्य , अध्यापक और टीचर के नाम से भी  जानते हैं, हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं। एक सभ्य समाज का निर्माण करने में गुरु का बहुत बड़ा योगदान होता है। गुरु का स्थान तो भगवान से’ भी बड़ा होता है। कबीर जी ने भी अपने दोहों में भी अकसर गुरु की महिमा का गान किया है। गुरु की महानता देखते हुए ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।

 

"सत्य क्या है झूठ क्या है ये सबक बताते है गुरु,

झूट क्या है और सच क्या है ये बात बताते है गुरु"


गोपाल कृष्ण पटेल "जी1"

 



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